वह कहते हैं की सारी कायनाथ अल्लाह ने बनाई ,

कुछ कहते हैं वह सनातनी हैं और सम्पूर्ण मानव जाती वासुदेव का कुटुंब है ,

पर हममे फर्क भी वही महसूस कराते हैं और तुम और हम मे भी यही लोग बांटते हैं।

विडंबना यह है की मैं जब इनको इन्हीं की कही बात का मतलब समझाता हूं तो यह मुझे गैर मुस्लमान और गैर हिन्दू घोषित कर देते हैं.

 

पिछले १०० वर्षों से यही खेल देख रहा हूँ तुम्हारा।

हे सनातन धर्म के ठेकेदारों और अल्लाह के बन्दों कब तक हमें लड़वायोगे

कभी लाउड स्पीकर पर अज़ान और अज़ान के समय आरती गा कर लड़वाते हो ।

कभी गाय के तो कभी सूयर को लेकर लड़वाते हो

और उसके बाद मेरे से सवाल करते हो की मैं किस के तरफ हूँ ।

विडंबना यह है की जब मैं इनको इन्हीं की कही बात का मतलब समझाता हूं तो यह मुझे गैर मुस्लमान और गैर हिन्दू घोषित कर देते हैं.

 

भाषण भी इन्होने दिए की हिन्दू मुस्लमान साथ नहीं रह सकते।

उकसाते भी यही हैं , डराते भी यही हैं , दंगे भी यही करवाते हैं

लाखों को विस्थापित कर दिया ,लाखों का खून बहा , दंगे भी कराये ,

वाह रे तुम्हारा खेल उसका दोष भी मुझ पर मढ़ दिया.

और फिर मुझ से पूछते हैं की मैने कुछ किया क्यों नहीं .

चित भी मेरी और पट्ट भी मेरी।

विडंबना यह है की जब मैं इनको इन्हीं की कही बात का मतलब समझाता हूं तो यह मुझे गैर मुस्लमान और गैर हिन्दू घोषित कर देते हैं.

 

उकसाते भी यह धूर्त हैं , पुराने ज़ख्मों को भी यही कुरेदत्ते हैं ,

चाहे वह सनातन धर्म के ठेकेदार हों या अल्लाह के , खून बहने के बाद कहेगा एक ही बात ;

हमे तो पहिले से मालूम था वह तो ऐसई हैं।

अल्लाह के ठेकेदार बोलेगे की हिन्दू पे भरोसा नहीं कर सकते और सनातन धर्म के ठेकेदार बोलेंगे की मुसलमान पे भरोसा नहीं कर सकते.

और विडंबना यह है की जब मैं इनको इन्हीं की कही बात का मतलब समझाता हूं तो यह मुझे गैर मुस्लमान और गैर हिन्दू घोषित कर देते हैं.

यह कैसे धूर्तों से पाला पड़ा है ईश्वर, मेरे देश का ।

 

Author. The author has requested not to reveal his name. hence kindly bear with this. 

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जय श्रीराम , रमेशजी ने दोनों हाथ पूरे ऊपर उठाके ज़ोर से बाबूजी को ग्रीट किया। बाबूजी रोज़ाना की तरह १० बजे छत पे अपनी आराम कुर्सी पर विराजमान थे। रोज़ाना १० बजे नाहा धो के बगैर नागा किये अपने दुमंजिले घर की छत पर आराम कुर्सी पेय विराजमान हो जाते हैं वहां उन्होने अपनी किताबें व अखबार रखी हुईं है और रोज़ एक बजे तक वह दुनिया से जुड़े रहते और दुमंजिले घर की छत पे बैठने के कारण उनका अपनी कॉलोनी पेय भी भरपूर नज़र रहती है. कौन कितने बजे ऑफिस जाता है, कौन दूध बांटने आता है , गेट पे तैनात सिक्योरिटी गार्ड्स मुस्तैदी से ड्यूटी कर रहे हैं या नहीं, कोई भी उनकी तेज़ नज़र से बच नहीं सकता था.

बाबूजी थे तो ७५ साल के पर लगते ६५ से ज़ियादा के नहीं थे। कद -काठी मे छोटे थे पर मज़बूत दिखते थे। सुबह एक घंटा योग करते थे और शाम को ३-४ किलोमीटर पैदल चलते थे। पूरी कॉलोनी मे जहाँ तक़रीबन ५०० घर थे ऐसा कोई भी न होगा जो उन्हें नहीं जानता हो. उसका कारण था उनका तजुर्बा और उनकी फितरत की अपने आपको हमेशा अपडेट रखना ; चाहे राजनीती हो, विदेश निति हो, टेक्नोलॉजी हो, स्टॉक मार्किट मे क्या चल रहा है , सिनेमा जगत मे क्या हो रहा है इत्यादि इत्यादि. बाबूजी ने कभी बताया तो नहीं पर पर लोग ही कहते हैं वह फ़ौज से रिटायर होने के बाद कई प्राइवेट कम्पनीज मे नौकरी की , अपनी खुद की बिज़नेस भी मैनेज की और तक़रीबन ७० साल की उम्र तक काम करने के बाद उन्हें लिखने का शौक लगा तो ३-४ किताबें लिख दीं। वह बच्चों के साथ बच्चे बन जाते जवानों के साथ उनकी रूचि के हिसाब से बात कर सकते थे.

इसके अलावा वह एक बिहेवियरिस्ट भी थे और कई कम्पनीज के साथ वह आर्गेनाईजेशन डेवलपमेंट के कंसलटेंट भी रहे। इस लिए लोगों का behaviour देख कर वह अंदाजा लगा ले लेते थे की उसके मन मे क्या चल रहा है. अतिश्योक्ति नहीं होगी यह कहने मे की बाबूजी उड़ती चिड़िया के पंख गिन सकते थे और बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे.

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